साल २०१४ से ही भारत देश में सुचना एवं प्रसारण के क्षेत्र में नवाचार लगातार हो ही रहे है | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आईटी प्रेम ही डिजिटल इण्डिया के दिवास्वप्न को साकार करने का जज्बा दे रहा है |
1 जुलाई २०१५ को प्रधानमंत्री ने डिजिटल इंडिया परियोजना की शुरुआत की थी| डिजिटल इंडिया यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वो सपना, जो साकार होने वाला है, जिसके जरिए पूरे देश के सशक्तिकरण व देश को इंटरनेट से जोड़ कर वैश्विक स्तर पर भारत को स्थापित करने की तैयारी है | इसकी शुरुआत वाले मौके पर टेलीकॉम मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी कहा था कि डिजिटल इंडिया भारत की तस्वीर बदलने वाली योजना साबित होगी।प्रसाद ने यह भी कहा कि मेक इन इंडिया के बिना डिजिटल इंडिया पूरा नहीं हो सकता।
डिजिटल इंडिया का मूल उद्देश्य है कि भारत के हर गांव में होगा इंटरनेट, हर सुविधा होगी ऑनलाइन। न हर जगह दस्तखत की टेंशन, न अस्पताल की लंबी लाइन। कुछ ही सालों में ये सारी बातें हकीकत बन जाएंगी और इस सपने को साकार करने की शुरुआत जुलाई २०१५ में हो चुकी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट डिजिटल इंडिया की शुरुआत दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में की थी । दिग्गज उद्योपति समेत करीब 10 हजार लोग इस समारोह में शामिल हुए थे। इसी के बाद यह मांग भी लगातार उठने लगी थी कि जब केंद्र सरकार देश भर में डिजिटल क्रांति का सूत्रपात कर ही रही है तो मीडिया इससे अछुता क्यों रहें| अमरीका जैसे विकसित राष्ट्र ने 30 जून 2000 में तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की अगुआई में इलेक्ट्रानिक हस्ताक्षर को क़ानूनी मान्यता दे कर उस राष्ट्र के सम्पूर्ण डिजिटल होने का प्रमाण दे दिया था उसी तरह हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार देश में डिजिटल भारत के सपने को साकार करने में जुटे है , डिजिटल शिक्षा, डिजिटल पेमेंट, डिजिटल वित्तीय सेवाएँ, शासकीय प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण आदि इसमें शामिल है | इसी लिए भारत में मीडिया संस्थानों ने भी स्वयं को डिजिटल युग के साथ-साथ कदमताल करने के उद्देश्य से तैयार करना शुरू कर दिया | किन्तु दुविधा आज भी इसके क़ानूनी महत्त्व की है |
सुचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने वेबसाइटों पर विज्ञापन के लिए एजेंसियों को सूचीबद्ध करने एवं दर तय करने की खातिर दिशानिर्देश और मानदंड तैयार तो किए हैं ताकि सरकार की ऑनलाइन पहुंच को कारगर बनाया जा सके।
और एक बयान भी दिया जिसमे यहां कहा गया कि दिशानिर्देशों का उद्देश्य सरकारी विज्ञापनों को रणनीतिक रूप से हर महीने सर्वाधिक विशिष्ट उपयोगकर्ताओं वाले वेबसाइटों पर डालकर उनकी दृश्यता बढ़ाना है। नियमों के अनुसार, विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) सूचीबद्ध करने के लिए भारत में निगमित कंपनियों के स्वामित्व एवं संचालन वाले वेबसाइटों के नाम पर विचार करेगा।
हालांकि विदेशी कंपनियों के स्वामित्व वाली वेबसाइट को इस स्थिति में सूचीबद्ध किया जाएगा कि उन कंपनियों का शाखा कार्यालय भारत में कम से कम एक साल से पंजीकृत हो एवं संचालन कर रहा हो।
नीति के तहत डीएवीपी के पास सूचीबद्ध होने के लिए वेबसाइटों के लिए तय नियमों में हर महीने उनके विशिष्ट उपयोगकर्ताओं की जानकारी देना शामिल है, जिसकी गहराई से जांच की जाएगी और भारत में वेबसाइट ट्रैफिक की निगरानी करने वाले किसी अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त तीसरे पक्ष से सत्यापित कराया जाएगा। इसी नीति के तहत वेबसाइट डीएवीपी द्वारा ऑनलाइन बिलिंग से संबंधित महत्वपूर्ण रिपोर्ट उपलब्ध कराने के लिए काम पर रखे गए किसी तीसरे पक्ष एड सर्वर (3-पीएएस) के जरिए सरकारी विज्ञापन दिखाएगा। इस तरह के हर वेबसाइट के विशिष्ट उपयोगकर्ताओं के आंकड़े की हर साल अप्रैल के पहले महीने में समीक्षा की जाएगी।
परन्तु विज्ञापन नीति के अतिरिक्त भी महत्वपूर्ण विषय न्यूज पोर्टल या कहें न्यूज वेबसाइटों की कानूनन मान्यता की है | जिस प्रकार भारत में समाचारपत्र प्रकाशित करने के लिए तमाम तरह की मान्यताएं लेनी होती है जिनमे भारत सरकार के अधीनस्थ ‘भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक कार्यालय’ की ही महत्वपूर्ण भूमिका है, जिसके पंजीयन होने के बाद ही उसे टाइटल और आरएनआई नंबर मिलता है और फिर समाचार पत्र का प्रकाशन होता है |
किन्तु न्यूज पोर्टल के लिए फ़िलहाल सरकार ने कोई व्यवस्था नहीं की है | किन्तु यही हम सुचना और प्रसारण मंत्रालय के आदेशों की माने तो उस विभाग में वेबसाइटो के सञ्चालन की सुचना आवश्यक है तथा उनके लिए उन्होंने भी कुछ नियम तय किये है जो उनके विज्ञापन नीति का हिस्सा भी है|
आइए जानते हैं क्या हैं शर्तें
- विज्ञापन उन्हीं को दिया जाएगा जो वेबमीडिया और पोर्टल कम से कम 3 साल से चल रहे हों।
- ऐसे वेबसाइट और पोर्टल जिनके दर का निर्धारण केंद्र सरकार के DAVP से किया गया हो।
- वेबमीडिया और पोर्टल राज्य के जनसंपर्क विभाग में रजिस्टर्ड होना चाहिए।
- विज्ञापन मान्यता के आवेदन के लिए वेबसाइट-पोर्टल को अपना रजिस्ट्रेशन सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय में कराना होगा।
- विज्ञापन वितरण के उद्देश्य से वेब माध्यमों को 3 कैटगरी में बांटा जाएगा।
- सरकारी विज्ञापन उसी वेबसाइट और पोर्टल को दिया जाएगा, जिसके पास हर महीने कम से कम ढाई लाख HIT आते हों।
- HIT की गणना के लिए पिछले 6 महीने का रिकार्ड देखा जाएगा।
- इसके लिए भारत में वेबसाइट ट्रैफिक मॉनीटरिंग करने वाली कंपनी के रिकार्ड मान्य होंगे।
राष्ट्रीय स्तर पर कोई संस्थान ऐसा नहीं बना जो भारत में संचालित वेब न्यूज पोर्टल की रीति-नीति बना पाएं, केवल पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी, भारत सरकार) ही कुछ नियम बना पाया परन्तु वो भी पोर्टल को कानून के दायरे में लाने में असमर्थ रहा | इसके अलावा मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, झारखण्ड,उत्तरप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ प्रदेश की राज्य सरकारों ने वेब मीडिया के पत्रकारों को प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रतिनिधियों की भांति ‘प्रेस अधिमान्यता’ की सुविधा राज्य मुख्यालय एवं मण्डल / जिला स्तर पर प्रदान की है। परन्तु वे राज्य सरकारे भी पोर्टल को नियमानुसार कानुनी दायरे में लाने में असमर्थ है| वे विज्ञापन नीति जरुर बना पाई परन्तु पोर्टल
न्यूज पोर्टल बनवाएं: कम खर्च में अधिक आय पायें
वेब पोर्टल की प्राथमिक लागत मूल्य डोमेन , होस्टिंग और डेवलपमेंट को मिला लिया जाए तो 6000 रुपयों से २५ हज़ार रुपयों के बीच आती है, सालाना खर्च 3000 रुपये से 6000 रुपयों तक आता है| इसी में गूगल द्वारा प्राप्त एड सेंस आदि की कमाई जोड़ी जाए तो इस खर्च की तुलना में कही अधिक है |
इसी लिए वेब पत्रकारिता को भारत में पत्रकारिता के स्वर्णिम भविष्य के रूप में भी देखा जा रहा है | आय के साथ साथ प्रचलन और तत्परता जैसे वांछनीय गुणों के रहते वेब पत्रकारिता भविष्य के गर्भ में उन्नति का पुष्ट दस्तावेज़ साबित होगी|